एक दिन सेठ ने एक महात्मा का प्रवचन सुना। प्रवचन सुनकर वह बहुत प्रभावित हुआ और उनसे मिलने चला गया। सेठ ने अपनी समस्या के बारे में स्वामी जी को बताया। उसने यह भी बताया कि उसके पास सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं है बस उसके पास तन और मन की शांति नहीं है। स्वामी जी मुस्कराते हुए बोले, 'भइया, तन और मन की शांति ही तो असली सुख है। यदि यह असली सुख न होता तो आप मेरे पास अपनी समस्या लेकर क्यों आते?'
उनकी इस बात पर सेठ बोला, 'स्वामी जी, आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। अब आप मेरी मानसिक अशांति व बीमारियों का कारण बताइए।' स्वामी जी ने कहा , 'सेठ जी, चूंकि आप अपंग हैं, इसलिए भूख न लगना, बीमारियों का शरीर में घर करना व नींद न आना स्वाभाविक ही है।' यह सुनते ही सेठ हैरानी से बोला, 'स्वामी जी, यह आप क्या कह रहे हैं? भला मैं अपंग कहां हूं? मेरे हाथ-पैर तो सही सलामत हैं।'
सेठ के ऐसा बोलने पर स्वामी जी बोले, 'भलेमानस, अपंग वही नहीं होता, जिसके हाथ-पैर न हों बल्कि वह भी होता है, जो हाथ-पैर होते हुए भी उनका उपयोग नहीं करता। आप तो हाथ-पैर होते हुए अपंग बने हुए हैं। आप नौकरों की संख्या कम कर दें। अपने हाथ-पैरों से काम लें। नियमित व्यायाम करें। फिर देखना कुछ ही दिनों में आपको खुलकर भूख भी लगने लगेगी और बीमारियां भी आपके शरीर से गायब हो जाएंगी।'
सेठ जी ने उसी दिन से अपना काम खुद करना शुरू कर दिया। सवेरे उठकर सैर व नियमित व्यायाम करने के बाद वह अपने व्यवसाय में जी-जान से मेहनत करने लगा और कुछ समय बाद बिल्कुल स्वस्थ हो गया ।
Hare Krishna !!
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