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Wednesday 22 July 2009

बाजारू आइसक्रीम-कितनी खतरनाक, कितनी अखाद्य?

आइसक्रीम के निर्माण में जो भी सामग्रीयाँ प्रयुक्त की जाती हैं उनमें एक भी वस्तु ऐसी नहीं है जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न डालती हो। इसमें कच्ची सामग्री के तौर पर अधिकांशतः हवा भरी रहती है। शेष 30 प्रतिशत बिना उबला हुआ और बिना छाना हुआ पानी, 6 प्रतिशत पशुओं की चर्बी तथा 7 से 8 प्रतिशत शक्कर होती है। ये सब पदार्थ हमारे तन-मन को दूषित करने वाले शत्रु ही तो हैं।

इसके अतिरिक्त आइसक्रीम में ऐसे अनेक रासायनिक पदार्थ भी मिलाये जाते हैं जो किसी जहर से कम नहीं होते। जैसे पेपरोनिल, इथाइल एसिटेट, बुट्राडिहाइड, एमिल एसिटेट, नाइट्रेट आदि। उल्लेखनीय है कि इनमें से पेपरोनिल नामक रसायन कीड़े मारने की दवा के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इथाइल एसिटेट के प्रयोग से आइसक्रीम में अनानास जैसा स्वाद आता है परन्तु इसके वाष्प के प्रभाव से फेफड़े, गुर्दे एवं दिल की भयंकर बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। ऐसे ही शेष रसायनिक पदार्थों के भी अलग-अलग दुष्प्रभाव पड़ते हैं।

आइसक्रीम का निर्माण एक अति शीतल कमरे में किया जाता है। सर्वप्रथम चर्बी को सख्त करके रबर की तरह लचीला बनाया जाता है ताकि जब हवा भरी जाये तो वह उसमें समा सके। फिर चर्बीयुक्त इस मिश्रण को आइसक्रीम का रूप देने के लिए इसमें ढेर सारी अन्य हानिकारक वस्तुएँ भी मिलाई जाती हैं। इनमें एक प्रकार का गोंद भी होता है जो चर्बी से मिलने पर आइसक्रीम को चिपचिपा तथा धीरे-धीरे पिघलनेवाला बनाता है। यह गोंद जानवरों के पूँछ, नाक, थन आदि अंगों को उबाल कर बनाया जाता है।

इस प्रकार अनेक अखाद्य पदार्थों के मिश्रण को फेनिल बर्फ लगाकर एक दूसरे शीतकक्ष में ले जाया जाता है। वहाँ इसे अलग-अलग आकार के आकर्षक पैकेटों में भरा जाता है।

एक कमरे से दूसरे तक ले जाने की प्रक्रिया में कुछ आइसक्रीम फर्श पर भी गिर जाती है। मजदूरों के जूतों तले रौंदे जाने से कुछ समय बाद उनमें से दुर्गन्ध आने लगती है। अतः उसे छिपाने के लिये चाकलेट आइसक्रीम तैयार की जाती है।

क्या आपका पेट कोई गटर या कचरापेटी है, जिसमें आप ऐसे पदार्थ डालते हैं। ज़रा सोचिए तो?

Hare Krishna !!

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