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Wednesday 22 July 2009

Duty of a Student!!

सिकंदर और उसके गुरु अरस्तू एक बार घने जंगल से कहीं जा रहे थे। मार्ग में उफनता हुआ एक बरसाती नाला मिला।
गुरु-शिष्य में इस बात को लेकर बहस होने लगी कि नाले को पहले कौन पार करेगा? नाला गहरा था। कुछ सोचकर सिकंदर इस बात पर अड़ गया कि नाले को पहले वह पार करेगा, बाद में गुरुदेव पार करेंगे। थोडे़ विवाद के बाद अरस्तू ने सिकंदर की बात मान ली। पहले सिकंदर ने नाला पार किया फिर अरस्तू ने। उस पार पहुंचकर फिर विवाद उठा।

अरस्तू ने पूछा, 'तुमने मेरी बेइज्जती क्यों की?' सिकंदर ने घुटने टेक दिए फिर अपने कान पकड़कर बोला, 'जी नहीं। ऐसा न कहें गुरुवर, ऐसा करना मेरा कर्त्तव्य था।' अरस्तू ने बात बीच में काटकर पूछा, 'क्यों?' सिकंदर ने कहा, 'क्योंकि अरस्तू रहेगा तो हजारों सिकंदर पैदा हो सकते हैं, पर सिकंदर तो एक भी अरस्तू नहीं बना सकता।'

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बुद्ध के एक शिष्य ने उनसे अनुरोध किया, 'मैं सूनापरांत
प्रांत में विचरण करना चाहता हूं।' बुद्ध ने पूछा, 'यदि सूनापरांत के लोग कठोर वचनों का प्रयोग करेंगे तो तुम्हें कैसा लगेगा?' शिष्य ने कहा 'मैं समझूंगा कि वे भले हैं क्योंकि मुझ पर हाथ नहीं उठाते। यदि उनमें से किसी ने थप्पड़ लगाया तो मैं उन्हें इसलिए भला समझूंगा कि वे मुझ पर डंडों का प्रयोग नहीं करते। डंडे मारने वाले भी मिल सकते हैं। मैं समझूंगा कि वो भी भले है क्योंकि शस्त्र चलाकर प्राण तो नहीं लेते। यदि शस्त्र से मार डालेंगे तो समझूंगा कि सूनापरांत के लोग भले हैं क्योंकि लोग जीवन से तंग आकर आत्महत्या करने के लिए शस्त्र खोजते हैं और यह शस्त्र मुझे अनायास ही प्राप्त हो गया।'

शिष्य की बात सुनकर बुद्ध बड़े प्रसन्न हुए और बोले, 'सच्चा साधु वही है जो किसी भी दशा में किसी को बुरा नहीं कहता। जो दूसरों की बुराई नहीं देखता, जो सबको भला समझता है, वही परिव्राजक होने योग्य है।'


Hare Krishna !!

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