एक बार दो भाई कारोबार के लिए दूसरे नगर जा रहे थे। यात्रा के लिए एक ऊंट था, सामान के लिए कुछ थैले थे व
सुरक्षा के लिए एक बंदूक भी थी। रास्ते में जंगल पड़ता था, जिसमें एक जगह तीन रास्ते निकलते थे। दोनों भाई उनमें से एक रास्ते पर आगे बढ़े कि अचानक सामने एक फकीर हाथ फैलाए खड़ा हो गया। व्यापारी भाइयों को जिस रास्ते जाना था, उधर जाने से उसने रोकने की कोशिश की। कहा, इस रास्ते में लालच का राक्षस बैठा है, तुम्हें खा जाएगा। भाइयों ने फकीर की बात हंसी में उड़ा दी और वह उसी रास्ते चल दिए। वे अभी कुछ दूर ही चले थे कि उन्हें मार्ग पर एक खजाना पड़ा दिखा। उनकी आंखें चमक गईं। उसे देखकर बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा, 'फकीर हमें मूर्ख बना रहा था। इस रास्ते से आने पर तो हमें बहुत लाभ हुआ। तुम ऐसा करो कि वापस जाओ और खजाना समेटने के लिए दस-बारह ऊंट ले आओ। मैं बंदूक लेकर खजाने की हिफाजत करता हूं।'
छोटा भाई नगर पहुंचा। साथ में ऊंट और रास्ते के लिए भोजन लिया। फिर सोचा कि यदि इस भोजन में जहर मिला दूं तो सारा खजाना मेरा हो जाएगा। और उसने भोजन में जहर मिला दिया। इधर बड़े भाई के मन में भी लोभ जागा। जैसे ही छोटा भाई पहुंचा, पेड़ के पीछे से बड़े भाई ने गोली चला दी। छोटा भाई वहीं ढेर हो गया। बड़े ने सोचा पहले भोजन करें फिर खजाना समेटें। उसने पहला कौर मुंह में रखा ही था कि एक हिचकी आई और वह भी मर गया। कुछ देर बाद जब फकीर उधर से गुजरा तो दोनों भाइयों की मृत्यु पर हंसने लगा और बोला, 'आखिर लालच के राक्षस ने दोनों को खा ही लिया। यदि बात मान लेते तो दोनों भाई जीवित रहते। धन-संपदा का लालच बहुत बुरा होता है। जो इसमें उलझा वह कहीं का नहीं रहता है।
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