राजस्थान के पर्वतीय क्षेत्र में डाकू दुर्जन सिंह का बड़ा आतंक था। उस इलाके के लोग उसके नाम से ही कांपत
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मुनि ने कहा, 'चलो मेरे साथ। पहाड़ी पर घूमने चलते हैं।' उन्होंने तीन पत्थर उसके सिर पर रखते हुए कहा, 'इन्हें ऊपर पहुंचाना है।' पत्थर भारी थे। डाकू दुर्जन सिंह अपने सिर पर पत्थर रखकर मुनि के साथ चल पड़ा। कुछ ऊपर चढ़ते ही वह बोला, 'महाराज, मुझसे इतना भार लिए नहीं चढ़ा जाता।' मुनि ने कहा, 'एक पत्थर गिरा दो।' उसने एक पत्थर गिरा दिया। कुछ दूर पार करने के बाद वह फिर रुक कर बोला, 'महाराज, दो पत्थर लेकर चलना भी भारी पड़ रहा है।'
मुनि ने दूसरा पत्थर भी सिर से नीचे गिरा देने को कहा। वह कुछ और ऊंचाई पर चढ़ा तो बोला, 'एक पत्थर का भार भी भारी पड़ रहा है।' मुनि ने कहा, 'इसे भी गिरा दो।' अब वह मुनि के साथ आनंदपूर्वक ऊपर चढ़ता चला गया। ऊपर पहुंचकर मुनि ने उसे समझाते हुए कहा, 'जिस प्रकार पत्थरों का भार ऊंचाई पर पहुंचने में बाधा डाल रहा था, उसी तरह पापों का बोझ शांति में बाधा डालता है।
जब तक तुम एक-एक करके तमाम पापों लोभ-लालच, हिंसा का त्याग न कर दोगे तुम शांति की मंजिल तक कदापि नहीं पहुंच सकोगे। आज ही संकल्प लो कि भविष्य में पाप-कर्म नहीं करोगे।' डाकू दुर्जन सिंह ने कान पकड़ कर संकल्प लिया। उसके बाद अपराध छोड़कर वह दीन-दुखियों की सेवा में लग गया।
Hare Krishna !!
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