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Sunday 12 July 2009

(Kathasagar) कथासागरः मेहनत का फल

किसी शहर में एक नौजवान रहता था, जो मेहनत करने से बहुत घबराता था। वह प्रतिदिन भीख मांगने के नए-नए तरीके


खोज निकालता। एक दिन एक महात्मा उसके शहर आए। वह जहां-जहां पांव रखते, वहां-वहां सोने के सिक्के जमीन से निकलते जाते। उनके इन चमत्कारी गुणों के कारण उनकी चर्चा चारों ओर होने लगी। उस नौजवान तक भी उनकी चर्चा पहुंची। उसने सोचा यदि महात्मा जी मुझे अपना शिष्य बना लें तो मजा आ जाएगा। वह नौजवान महात्मा जी के पीछे-पीछे चलने लगा। उसे प्रतिदिन सोने के सिक्के मिलने लगे, लेकिन इसमें उसे काफी मेहनत करनी पड़ती थी। महात्मा जी हमेशा दुर्गम और उबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते थे। नौजवान को चलने पर बहुत तकलीफ होती थी, लेकिन वह लालचवश उनका साथ नहीं छोड़ पा रहा था। एक दिन वह बोला, 'बाबा, आप थोड़े से सोने के सिक्कों के लिए मुझसे इतनी मेहनत क्यों करवाते हो?' महात्मा बोले, 'बेटा, मैं तुमसे मेहनत नहीं करवाता बल्कि तुम स्वयं मेहनत करते हो। याद रखो, यही मेहनत तो प्राप्ति का मूल है। अब तुम समझ गए होगे कि बिना मेहनत के फल नहीं मिलता।'

आत्मतत्व का ज्ञान
उद्दालक ने विश्वजीत यज्ञ किया और दक्षिणा में वृद्ध और कृशकाय गायें दान कीं। पुत्र नचिकेता इस दान को समझ न सका और उसने अपने पिता से पूछा, 'आपने मुझे किसे दान में दिया?' नचिकेता के इस संकेत को न समझ उद्दालक ने क्रोध में कहा, 'जा मैंने तुझे मृत्यु के देवता को दान में दिया।' नचिकेता यमलोक गया। कठिन परीक्षा के पश्चात यम प्रसन्न हुए और तीन वर मांगने को कहा। नचिकेता ने पिता के क्रोध को शांत करने, अग्निविद्या का रहस्य और आत्मतत्व संबंधी ज्ञान का वरदान मांगा। यम ने कई प्रलोभन देकर नचिकेता को परखा किंतु वह विचलित नहीं हुआ और आत्मतत्व संबंधी ज्ञान लेकर ही संतुष्ट हुआ। इसके बाद से अग्निविद्या का नाम नचिकेता के नाम पर पड़ा और यम-नचिकेता का वह संवाद 'कठोपनिषद' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


Hare Krishna !!

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